बवासीर को पाइल्स भी कहा जाता है। बवासीर एक ऐसी बीमारी है, जो बेहद तकलीफदेह होती है। इसमें गुदा के अंदर और बाहर तथा मलाशय
के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है। इसकी वजह से गुदा के अन्दर और बाहर, या किसी एक जगह पर मस्से बन जाते हैं। मस्से कभी अन्दर
रहते हैं, तो कभी बाहर आ जाते हैं। आयुर्वेद में बवासीर को ‘अर्श’ कहा गया है। यह वात, पित्त एवं कफ तीनों दोषों के दूषित होने से होता है।
इसलिए इसे त्रिदोषज रोग कहा गया है। जिस बवासीर में वात या कफ की प्रधानता होती है, वे अर्श शुष्क होते हैं। इसलिए मांसांकुरों में से स्राव
नहीं होता है। जिस अर्श में रक्त या पित्त या रक्तपित्त की प्रधानता होती है, वे आर्द्र अर्श होते हैं। इसमें रक्तस्राव होता है। शुष्क अर्श में पीड़ा
अधिक होती है। करीब 60 फीसदी लोगों को उम्र के किसी न किसी पड़ाव में बवासीर की समस्या होती है। रोगी को सही समय पर पाइल्स का
इलाज कराना बेहद जरूरी होता है। समय पर बवासीर का उपचार नहीं कराया गया तो तकलीफ काफी बढ़ जाती है। यह एक अनुवांशिक समस्या
भी है। यदि परिवार में किसी को यह समस्या रही हो, तो इससे दूसरे व्यक्ति को होने की आशंका रहती है। बहुत पुराना होने पर यह भगन्दर का
रूप धारण कर लेता है जिसे फिस्टुला भी कहते हैं। इसमें असहाय जलन एवं पीड़ा होती है। आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में समय पर भोजन
नहीं करना और कम पानी पीना, नियमित रूप से व्यायाम नहीं करना और घंटों एक ही जगह पर बैठे रहना, कब्ज जैसी आदतों से लोग कई
बीमारियों के शिकार होते हैं। पिछले कुछ समय से लोगों में बवासीर बीमारी लोगों में अधिक देखने को मिल रहा है। इसकी मुख्य वजह लोगों का
घंटों तक कंप्यूटर के सामने बैठे रहना है और जंकफूड आदि का सेवन है।
बवासीर दो प्रकार की होती है-
1. खूनी बवासीर
खूनी बवासीर में किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती है। इसमें मलत्याग करते समय खून आता है। इसमें गुदा के अन्दर मस्से हो
जाते हैं। मलत्याग के समय खून मल के साथ थोड़ा-थोड़ा टपकता है, या पिचकारी के रूप में आने लगता है। मल त्यागने के
बाद मस्से अपने से ही अन्दर चले जाते हैं। गंभीर अवस्था में यह हाथ से दबाने पर भी अन्दर नहीं जाते। इस तरह के बवासीर
का तुरंत उपचार कराएं।
2. बादी बवासीर
बादी बवासीर में पेट की समस्या अधिक रहती है। कब्ज एवं गैस की समस्या बनी ही रहती है। इसके मस्सों में रक्तस्राव नहीं
होता। यह मस्से बाहर आसानी से देखे जा सकते हैं। इनमें बार-बार खुजली एवं जलन होती है। शुरुआती अवस्था में यह
तकलीफ नहीं देते, लेकिन लगातार अस्वस्थ खान-पान और कब्ज रहने से यह फूल जाते हैं। इनमें खून जमा हो जाता है,
और सूजन हो जाती है। इसमें भी असहनीय पीड़ा होती है, और रोगी दर्द से छटपटाने लगता है। मलत्याग करते समय, और
उसके बाद भी रोगी को दर्द बना रहता है। वह स्वस्थ तरह से चल-फिर नहीं पाता, और बैठने में भी तकलीफ महसूस करता
है। इलाज कराने से यह समस्या ठीक हो जाती है।
बवासीर होने के लक्षण-
-गुदा के आसपास कठोर गांठ जैसी महसूस होती है। इसमें दर्द रहता है, तथा खून भी आ सकता है।
-शौच के बाद भी पेट साफ ना हेने का आभास होना।
-शौच के वक्त जलन के साथ लाल चमकदार खून का आना।
-शौच के वक्त अत्यधिक पीड़ा होना।
-गुदा के आस-पास खुजली, एवं लालीपन, व सूजन रहना।
-शौच के वक्त म्यूकस का आना।
-बार-बार मल त्यागने की इच्छा होना, लेकिन त्यागते समय मल न निकलना।
बवासीर होने के मुख्य कारण-
-कुछ व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटे खड़े रहना पड़ता है, जैसे- बस कंडक्टर, ट्रैफिक पुलिस इत्यादि। इसके
साथ ही जिन्हें भारी वजन उठाना पड़ता है। इन लोगों को बवासीर से पीड़ित होने की अधिक संभावना रहती है।
-कब्ज भी बवासीर का एक प्रमुख कारण है। कब्ज में मल सूखा एवं कठोर होता है, जिसकी वजह से व्यक्ति को मलत्याग करने
में कठिनाई होती है। काफी देर तक उकड़ू बैठे रहना पड़ता है। इस कारण से वहां की रक्तवाहिनियों पर जोर पड़ता है, और
वह फूलकर लटक जाती है, जिन्हें मस्सा कहा जाता है।-अधिक तला एवं मिर्च-मसाले युक्त भोजन करना।
-शौच ठीक से ना होना।
-फाइबर युक्त भोजन का सेवन न करना।
-महिलाओं में प्रसव के दौरान गुदा क्षेत्र पर दबाव पडने से बवासीर होने का खतरा रहता है।
-आलस्य या शारीरिक गतिविधि कम करना।
-धूम्रपान और शराब का सेवन।
-अवसाद
बवासीर से बचने के उपाय-
-फाइबरयुक्त फू्ड्स का न केवल सेवन करना चाहिए बल्कि इसे अपनी आदत बना लेनी चाहिए।
-प्रति दिन 8 से 10 ग्लास पानी जरूर पिएं
-समय पर भोजन जरूर करें
-बवासीर के इलाज के लिए प्रति दिन दो लीटर लस्सी में करीब 50 ग्राम जीरे का पाउडर मिलाकर उसे पूरा दिन पानी की जगह पीना चाहिए।
ऐसा करने से बवासीर के मस्से मिट जाते हैं।
-फलों के ताजा जूस और सब्जियों के सूप का सेवन करें।
बवासीर होने पर खाएं ये चीजें---
1. हरी पत्तेदार सब्जियां- बवासीर की समस्या होने पर हरी पत्तेदार सब्जिया खानी चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियों में बहुत अधिक मात्रा में पोषक
तत्व और एंटीअक्सीडेंट मौजूद होते हैं। इनको खाने से बवासीर ठीक होने के साथ ही पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। पालक, पत्ता गोभी,
शतावरी, ब्रोकली, फूल गोभी, प्याज, खीरा और गाजर आदि को बवासीर की समस्या में अपने आहार को जरूर शामिल करें।
2. भरपूर पानी पीएं- इस समस्या में कम से कम रोजाना 3 से 4 लीटर पानी पीना चाहिए। अधिक मात्रा में पानी पीने से शरीर से विषैले पदार्थ
आसानी से बाहर निकल जाते हैं। इसके अलावा भरपूर पानी पीने से मल त्याग में आसानी होती है और कब्ज की समस्या नहीं होती है।
3.साबुत अनाज- बवासीर की समस्या होने पर ब्राउन राइस, ओटमील, होल ग्रेन आटा, होल वीट पास्ता और मल्टी ग्रेन ब्रेड को डाइट में शामिल
करना चाहिए। बवासीर में इन चीजों को खाने से इस समस्या में बहुत फायदा मिलता है।
4. छाछ पीएं- छाछ या दही खाने से पाचन क्रिया सही रहती है। दही में पाए गुण शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है।
इसके साथ ही यह बवासीर के लक्षणों को कम करते हैं।
5. मूली का सेवन- रोजाना मूली का सेवन करने से भी पाइल्स या बवासीर की समस्या से राहत मिलती हैं। मूली में पाएं जाने वाले गुण बवासीर
से राहत दिलाने का काम करते हैं।
-आयुर्वेद का वरदान है ‘अर्शस किट’-
आयुर्वेद में प्रत्येक रोग का जड़ से उपचार संभव है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति हमारे ज्ञानवान, तपस्वी ऋषि-मुनि की देन है जिसका हम लोग सदियों
से असाध्य रोगों को दूर करने के लिये इस्तेमाल कर रहे हैं। आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण लाभकारी जड़ी-बूटियों से किया जाता है, जो शरीर पर
किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं डालती। यानि ऐसा नहीं होता कि जिस रोग के उपचार के लिये हम दवा ले रहे हैं, वह तो ठीक हो जाये, लेकिन
इन दवाईयों का विपरीत असर हो जाये जिससे कोई दूसरा रोग उत्पन्न हो जाये। पाचन से संबंधित समस्याओं से मुक्ति दिलाने के लिये
एस.बी.एस. हर्बल प्रा. लि. के अनुभवी आयुर्वेदाचायों की टीम ने रिसर्च कर ‘अर्शस किट’ तैयार की है। इस किट में बहुमूल्य जड़ी-बूटियों से
बनाई गई आयुर्वेदिक दवाइयों का समावेश है। ‘अर्शस किट’ में अर्शस वटी, अर्शस ग्रेन्यूल्स, नित्तम फ्रेश पाउडर और एसबीएस हर्बल टी का
समावेश है। अर्शस वटी और अर्शस ग्रेन्यूल्स पाचन से संबंधित रोग को ठीक करने में सहायता करते हैं, नित्तम फ्रेश पाउडर शरीर से विषैले
पदार्थों को बाहर निकालता है और वहीं, एसबीएस हर्बल टी एंटीअक्सीडेंट्स से भरपूर होती है, जो अन्य बीमारियों से शरीर की रक्षा करती है।
इससे प्रतिरक्षा भी मजबूत होती है। इस कंपलीट आयुर्वेदिक पैकेज को नियमित लेने से बवासीर जैसे गंभीर रोग से मुक्ति मिलती है।
सेवन विधि:
अर्शस वटी - 1-1 गोली सुबह व शाम खाना खाने के बाद पानी के साथ ले या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
अर्शस ग्रेन्यूल्स - आधा आधा चम्मच सुबह शाम खाने के बाद पानी के साथ या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
नित्तम फ्रेश पाउडर - 1 चम्मच रात को सोते समय गुनगुने पानी के साथ या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
एसबीएस हर्बल टी - चौथाई चम्मच दिन मे दो बार एक कप पानी में उबालकर छानकर पीयें या चिकित्सक के परामर्शानुसार।
अर्शस ओइन्टमेंट - आवश्यकता अनुसार दिन में एक से दो बार प्रभावित जगह पर लगायें या चिकित्सक के परामर्शानुसार।